जीवन जीने का तरीका

हमारी इच्छा नहीं, हमारी हस्ती हमारे जीवन का निर्धारण करती है

आप क्या हैं आप उसको बदलिए। अगर आप गलत हैं तो आप जो करेंगे

उसका सामने वाले पर प्रभाव गलत ही पड़ेगा।

इसलिए फिर ऋषियों ने समझाया है

कि दूसरे को प्यार करने से पहले

खुद से प्यार कर लो,

दूसरे को चाहने से पहले

खुद को चाह लो,

दूसरे को सुधारने से पहले

खुद को सुधार लो!

ये स्वार्थ ज़रूरी है क्योंकि अगर तुमने अभी

खुद को सुधारा नहीं तो तुम दूसरे को भी बर्बाद ही करोगे।

चाहने से कुछ नहीं होता, जागने से होता है, समझने से होता है। उसी के लिए तो अध्यात्म है।

हम बड़ी ग़लतफ़हमी में जीते हैं, हमें लगता है कि चीज़ें हमारी इच्छा से चलेंगी।

चीज़ें तुम्हारी इच्छा से नहीं तुम्हारी हस्ती से चलती हैं।

इन दोनों में बहुत अंतर है

जो होगा वो आपकी इच्छानुसार नहीं होगा आपके अस्तित्व, आपकी हस्ती के अनुसार होगा।

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