अहिंसात्मक सोच रखना

जब मैं कहता हूँ कि 'मत मारो',

तो इसलिए कहता हूँ ताकि तुम चैन से जी सको। बात न मुर्गे की है, न बकरे की है, न गाय की है, न भैंस की है और न ही फल या सब्जी की है-बात 'मन की गुणवत्ता की है।

और हर प्रकार की हिंसा से मन को बचाओ ताकि 'तुम' चैन और विश्रम पा सको।

अपने स्वार्थ के लिए, अपने परमार्थ के लिए, बचो जानवरों को मारने से, या किसी को भी मारने से।

किसी भी प्रकार की हिंसा से बचो-किसी और की ख़ातिर नहीं, अपनी ख़ातिर।

इसमें ये भी शामिल है कि तुम जानवरों का शोषण करते हो, उनका दूध निकालते रहते हो, उनको बंधक बनाकर रखते हो

हर प्रकार की हिंसा की बात कर रहा हूँ मैं मनुष्य के प्रति, पर्यावरण के प्रति, जानवर के प्रति, स्वयं के प्रति ।

मैं कह रहा हूँ-तुमने जो भी हिंसा करी है, चाहे किसी के भी ख़िलाफ़ करी हो, अंततः अपने ही ख़िलाफ़ करी है। इसीलिए, स्वयं से मैत्री दिखाते हुए, हिंसा से बचो।

दूसरे का ख्याल नहीं, अपना ही ख्याल कर लो।

                                                                          
               

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